सितम सिखलाए गा रसम वफ़ा ऐसे नहीं होता
सनम दिखलायें गे राह खुदा ऐसे नहीं होता
गिनो सब हसरतें जो खूं हुई हैं तन के मक़्तल में
मेरे कातिल हिसाब खूँ बहा ऐसे नहीं होता
जहाँ दिल में काम आती हैं तदबीरें न तज़ीरें
यहाँ पैमान तस्लीम व रज़ा ऐसे नहीं होता
हर एक सब हर घडी गुज़रे क़यामत यूँ तो होता है
मगर हर सुबह हर रोज़ जजा ऐसे नहीं आती
रवां है नब्ज दौराँ गर्दिशों में आसमान सारे
जो तुम कहते हो सब कुछ हो चुका ऐसे नहीं होता