उदास रातों में तेज काफी की तल्खियों में

उदास रातों में तेज काफी की तल्खियों में 
वो कुछ ज्यादा ही याद आते हैं सर्दियों में 

मुझे इज़ाज़त नहीं है उसको पुकारने की 
जो गूंजता है लहू में सीने की धड़कानो में 

वो बछ्पना जो उदास राहों में खो गया था 
में ढूंढता हूँ उसे तुम्हारी शरारतों में 

उसे दिलासे तो दे रहा हूँ मगर ये सच है 
कहीं कोई खौफ बढ़ रहा है तसल्लियों में 

तुम अपने पोरों से जाने क्या लिख गए थे जाना 
चराग रोसन है अब भी मेरी हथेलियों में

जो तू नहीं है तो ये मुकम्मल न हो सकेगी 
तेरी यही अहमियत है मेरी कहानियों में 

मुझे यकीं है वो थाम लेगा भ्रम रखे गा 
ये मान है तो दिए जलाये हैं आँधियों में 

हर एक मौसम में रौशनी से बिखेरते हैं 
तुम्हारे गम के चराग मेरी आँधियों में 


सामने है जो उसको लोग............

सामने है जो उसको लोग बुरा कहते हैं 
जिसको देखा ही नहीं उसको खुदा कहते हैं 

( मिर्ज़ा ग़ालिब )

फिर न इन्तिज़ार में नींद........

फिर न इन्तिज़ार में नींद आयी उम्र भर 
आने का अहद कर गया,आये जो ख्वाब में

(मिर्ज़ा ग़ालिब)

इतने खूबसूरत तो नहीं हैं .....

इतने खूबसूरत तो नहीं हैं जानेमन हाँ मगर 
जिसे आँख भर कर देखलें उसे उलझन में डाल देते हैं 

हम इन्तिजार करेंगे तेरा क़यामत तक

हम इन्तिजार करेंगे तेरा क़यामत तक 
खुदा करे क़यामत हो और तू आये 

पजबूरियों के नाम पे दामन बचा गये वो लोग

पजबूरियों के नाम पे दामन बचा गये वो लोग 
जिसने प्यार में दावा वफ़ा का क्या था। 

बसा के खुद को मेरी आँख में कहाँ चले तुम

बसा के खुद को मेरी आँख में कहाँ चले तुम
ये शहर-ए-इश्क़ यहाँ हिज़रत की इजाजत